शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

कोई तो मानक हो ब्लाग लेखन का - 4

ध्यान रखिए, सार्वजनिक होते लागू हो जाता है कोड

कुछ साथियों ने हमें कठघरे में रखा है और कहा है कि कोई तो मानक हो ब्लाक लेखन का सीरीज के तहत आप टीआरपी बढ़ाना चाहते हैं। उनकी टिप्पणी इसी सीरीज की पोस्ट के साथ प्रकाशित हैं। एक डाक्टर साहब ने टिप्पणी में लगाकर रखे गये माडरेशन पर तीखी टिप्पणी की है। उन्होंने लिखा है कि जब उन्होंने देखा कि माडरेशन लगा है तो वे अपनी टिप्पणी लिखना भूल गये। खैर।

जहां तक टीआरपी बढ़ाने का सवाल है, हम इसका जवाब एक कथा से देना चाहेंगे। शायद उस कथा से यह पता चले कि टीआरपी बढ़ायी नहीं जाती, जिसकी टीआरपी बढऩी होती है, खुद-ब-खुद बढ़ ही जाती है, उसे कोई नहीं रोक सकता। जी हां, उसे कोई नहीं रोक सकता। मेरा आपसे सवाल है कि क्या उसे कोई रोक सकता है? तो कथा सुनिए।

बोधिसत्व के अंदर जब ज्ञान का प्रस्फुटन हो रहा था तो उनके संगी-साथी उनसे बिछुड़ चुके थे। ऐसा कहिए कि उनका साथ छोड़ चुके थे। अब उनके अंदर जो ज्ञान प्रस्फुटित हो रहा था, वह बाहर निकलने और वायुमंडल में व्याप्त हो जाने को बेताब था। बुद्ध क्या करते? जंगल में ही एक बड़े पत्थर पर बैठ गए और लगे प्रवचन करने। सुनने वाला कोई नहीं, मगर वे करने लगे प्रवचन। मगर, नहीं। सुनने वाले थे। पूरा जंगल उन्हें सुनने लगा। जब वे प्रवचन करते, चिडिय़ां चहचहाना भूल जाती, जानवर शोर मचाना भूल जाते, यहां तक कि हवाएं तक शांत हो जाती थीं। बाद में उस शांति ने उनके साथियों को भी चौंकाया और जब उन्हें जंगल की इस शांति का पता चला तो वे भी बुद्ध की शरण में पहुंच गये।

क्या मतलब है इस कथा का? इस कथा का मतलब है, आप जब अपना काम सही तरीके से और पूरी निष्ठा से करेंगे तो उसका उचित और सही फलाफल मिलेगा ही। टीआरपी बढऩे के पीछे भी कुछ ऐसा ही मामला होता है। हमारा लेखन कुछ और सिलसिले में चल रहा है। हम ये नहीं कहना चाहते कि हम बुद्ध की भांति किसी नीरव जंगल में अपना प्रवचन कर रहे हैं। हम एक मानक, एक मर्यादा की बात कर रहे हैं। दुनिया का शायद कोई ऐसा इंसान न हो, जिसकी अपनी कोई मर्यादा नहीं हो। हां, यह और बात है कि इस मर्यादा के मूल्यांकन का पैमाना वक्त और परिस्थितियों के मुताबिक अलग-अलग हो सकता है।

एक दफ्तर में एक चपरासी के लिए मानक और उसी दफ्तर में उसके बास के लिए मानक में थोड़ा अंतर तो हो सकता है, पर दफ्तर एक होने के नाते एक समान मर्यादा तो कायम करनी ही पड़ती है, समान मानक पर काम करना ही पड़ता है। हां, दो दफ्तरों के बीच समान मानक होना जरूरी नहीं है। बात ब्लाग लेखन में मानक की हो रही है, जो व्यक्ति अपने दायरे के लिए लिखता होता है, पर उसका आवेग और परिणाम सब सार्वजनिक होता है। और जब कभी आप सार्वजनिक होते हैं, आपके ऊपर एक मानक, एक कोड लागू हो जाता है। भले ही वह अदृश्य क्यों न हो। हो जाता है कि नहीं? और यदि हो जाता है तो इसकी बात करना, इसके लिए बहस छेडऩा क्या टीआरपी बढ़ाने के लिए है? इस सवाल को हम बकवास मानते हैं।

हम डाक्टर साहब से कहना चाहेंगे कि माडरेशन से आपको बिल्कुल घबराना नहीं चाहिए था। माडरेशन सिर्फ इसलिए रखा गया है कि कोई भी कभी भी उल-जुलूल न डाल दे। कभी ऐसा हुआ तो उस आलेख को ही नष्ट करना पड़ेगा। अभी यह कला हम नहीं सीख पाए हैं कि एक बार कमेंट पब्लिश करने के बाद उसे कैसे हटाया जा सकता है। वैसी स्थिति में पूरी पोस्ट को ही किल करना पड़ जाएगा। आप भी मानेंगे डाक्टर साहब कि यह ठीक नहीं होगा। हम वादा करते हैं कि हमारे ऊपर आप तीखी से तीखी टिप्पणी करें, उसे आप प्रकाशित पाएंगे। हम फिर से आश्वस्त करते हैं कि इम्तिहान की टिप्पणियों पर जो माडरेशन लगा है, वह सिर्फ अश्लील जुबां वाली टिप्पणियों को प्रकाशित होने से रोकने के लिए ही लगा है। डाक्टर साहब, आप जैसा व्यस्त व्यक्ति हमारे ब्लाग पर आया, आलेख पढ़ा और टिप्पणी के लिए तैयार हुआ, इसके हम आभारी हैं। फिलहाल ब्लाग लेखन के मानक को लेकर अभी बहस जारी रहेगी। आपके सुझावों, टिप्पणियों का स्वागत है। इस खुली बहस में भाग लेने के लिए आप आमंत्रित हैं।

कौशल, पुरुषोत्तम।

7 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

आप जब अपना काम सही तरीके से और पूरी निष्ठा से करेंगे तो उसका उचित और सही फलाफल मिलेगा ही----

बस, करते रहिये. बाकी की चिन्ता तज दिजिये.

शुभकामनाऐं.

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

कथा रोचक है।

Neeraj Rohilla ने कहा…

जब आपने इस So Called विमर्श की पहली कडी देखी तो अंदाजा हो गया था कि आप इसे लम्बा खींचेगे और आज चौथी कडी छपने के बाद इकटठा पढने आये हैं।
आपने ऐसा क्या लिख दिया है जो एक आम ब्लाग लेखक/पाठक को पता नहीं है? एक बार कहते हैं कि टी आर पी के चक्कर में न पडें और फ़िर वही गलती खुद कर बैठते हैं। बिल्कुल वैसा ही जैसा कि सफ़ल जीवन कैसे जियें टाईप के सेमिनार में खुशी खुशी जाओ और जाकर पता चले अरे यही सब तो हम रोज करते हैं, ;-)

खैर, हम किसी मानक को नहीं मानते सब पढ लेंगे सविता भाभी से लेकर जो भी तीस/चालीस/पचास मार खां लेख हों, सभी।

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर जी कथा भी सुनी मजे दार, लेकिन प्रसाद तो मिला नही, हम कथा सिर्फ़ प्रसाद के लालच मै ही सुनते है, लेकिन यह टी आर पी क्या बला है यह आज तक तो हमारी समझ से बाहर है

Nitish Raj ने कहा…

थोड़ी बहुत समझ में आगई और बाकी के लिए लगातार चारों कड़ी को एकसाथ पढ़ना होगा। ये कथा तो समझ ली।

अभय तिवारी ने कहा…

सही है!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

सही है भई. अब कुछ नयी बाते हो जाए