बुधवार, 4 मार्च 2009

... तो राबड़ी आज भी सीएम होतीं

अरविंद जी ने पूर्व की पोस्ट 'जंगल राज के भी नियम ध्वस्त हो गये थे' पर अपनी कुछ टिप्पणियां दी हैं। उनकी बातें यहां हू-ब-हू पोस्ट कर रहा हूं। उन्होंने कहा है -
"शुक्ला जी, जनता अब जाति के आधार पर वोट देने लगी है. कोर्ट की तमाम नकारात्मक टिप्पणियों के बावजूद लालू की पार्टी बिहार में दोबारा सत्ता में आई, यह इस बात का परिचायक है कि सामाजिक समीकरण (जनता) तब भी लालू के पक्ष में था. कोर्ट की टिप्पणियों के आपके जितने भी उदाहरण हैं, सभी सन २००० के पहले के हैं. बिहार में इसके बाद भी चुनाव हुए और लालू की पार्टी २००५ तक सत्ता में बनी रही. हाँ, इसके बाद नीतीश कुमार की बिरादरी और राम विलास पासवान के समर्थक लालू के तिलिस्म से बहार निकल गए, जिसकी वजह से लालू से खार खाए लोगों को मौका मिल गया. कुर्मी और दलितों का अगर लालू से मोह भंग नहीं होता तो राबडी आज भी बिहार की मुख्यमंत्री होतीं. आपने लालू-राबडी राज की समीक्षा बहुत एकपक्षीय होकर की है. लालू की देन पर भी कभी गौर कीजिएगा, तो असली तस्वीर नजर आएगी. मेरे गाँव के कन्हाई साव ८० साल की उम्र में १९८८ में मर गए, लेकिन उन्होंने ताउम्र कभी बैलेट पेपर नहीं देखा, सामन्तियों ने कभी वोट डालने नहीं दिया. आज उनका पुत्र अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रहा है तो इसमें सौ फीसदी लालू का योगदान है. आपसे आग्रह है कि लालू राज की समीक्षा कभी आप कन्हाई साव के नजरिए से भी कीजिये, पत्रकारिता समग्र दृष्टि मांगती है. "
अरविंद जी की किसी बात पर कोई मीन-मेख न निकालते हुए मेरा मानना है कि वे अभी इस चर्चा को जारी रखना चाहते हैं, फिर विधानसभा चुनाव के बाद राजद के नेतृत्व में सरकार कैसे बनी, कैसे चली, इसका राज फाश करवाना चाहते हैं। हालांकि, मैं इस चर्चा की आखिरी किस्त लिख चुका हूं। मुद्दे और भी हैं, बातें और भी हैं। अरविंद जी चर्चा को एकपक्षीय करार देने के दौरान शायद उस प्रश्न को भूल गये, जिसके जवाब को तलाशने के लिए इतिहास को खंगाला जा रहा था। किसी व्यक्ति विशेष या पार्टी विशेष पर यह टिप्पणी नहीं थी। फिलहाल मैं तो इतना ही कहना चाहूंगा कि राबड़ी सरकार का फिर से सत्ता में आना सिर्फ जातिवाद के समीकरण का प्रभावी हो जाना नहीं था, यह बड़ी और मतलबी राजनीतिक गठबंधन का प्रतिफल भी था। हालांकि, यह भी इतिहास को खंगालने जैसा ही है। अरविंद जी की बातों का जवाब शायद उस इतिहास को खंगालने में मिल जाये, जब उन्हें यह बताया जाय कि बिहार में राबड़ी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन क्यों लगा और कैसे हटा? बहस शुरू हो चुकी है, थोड़ी मशक्कत आप भी क्यों नहीं कर लेते अरविंद जी?