बुधवार, 11 जून 2008

मेरी बात

बात चाहे किसी की हो, सुनी जानी चाहिए। यह अलग बात है कि यहाँ बातें सुनी नहीं देखी जाएगी। क्या फर्क पड़ता है। भूमिका बांधने का कोई खास मतलब तो है नहीं। शुरुआत से ही शुरू करें। न जानें कहाँ-कहाँ भटकते हुए यहाँ तक पहुंचे हैं। यहाँ तक पहुँचने में जो चीजें पीछे छूट गयीं, उनकी बहुत याद आती है। कई dafa तो ऐसा लगता है, जैसे सब कुछ bekar हो। sidhi si बात यह है की यहाँ हम सिर्फ़ अपने मन की बात करना चाहते हैं, जो शायद kahin और नहीं कर paate ।