मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

बिहार में ग्रेट इंडियन तमाशा

ग्रेट इंडियन तमाशा यानी महासंग्राम यानी आम चुनाव का अभी बिगुल ठीक से बजा भी नहीं है, पर पहलवान हैं कि ताल ठोकने लगे हैं। वैसे तो इस प्रकार का समां पूरे देश में बंधा हुआ है, पर बिहार में, भई, यह कुछ खास अंदाज में ही सरंजाम पाता दिख रहा है। अखाड़े आबाद हो गये हैं और मुकाबले की छटपटाहट गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले जुबानों की सुर्खियों पर चढ़ी दिखने लगी है। घात-प्रतिघात में बोले जा रहे शब्दों के नमूने अभी भले ऊपरी स्तर पर ही हों, पर उनका रंग आम मानस पर चढ़ता भी दिख रहा है। जीत जायेंगे हम का बोलबाला कुछ यूं फिजा में तैर रहा है, मानो मतदान कल ही होने वाला है, फैसला कल ही आने वाला है। और इसका श्रेय उन तीन दिग्गजों के नाम जाता है, जो धुरी के रूप में पब्लिक के सामने, ऊपर और अगल-बगल सुदर्शन चक्र की भांति घूम रहे हैं। पिछड़ों और दलितों की राजनीति करने वाले ये तीन दिग्गज हैं- एनडीए यानी जदयू और भाजपा के संयुक्त प्रयासों के क्षत्रप मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, राजद सुप्रीमो व केन्द्रीय रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव तथा लोजपा किंग व केन्द्रीय रसायन-उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान। सरकारी अभियान की आड़ में अब ग्रेट इंडियन तमाशे की खासियत देखिए।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने विकास यात्रा शुरू कर रखी है। सरकारी अभियान, सरकार गांवों की ओर, जरूरत अभी ही। क्यों? क्योंकि चुनाव जो सिर पर है। इसके तहत वे न केवल गली-गली घूम रहे हैं, बल्कि जिले के एक गांव में रात्रि विश्राम भी कर रहे हैं। शाम में लग रही है चौपाल और गांव में लग रहा है जनता दरबार। अगले रोज शहर में जनसभा। अब भई, मुख्यमंत्री घूमेगा तो सरकारी अमला-जमला भी घूमेगा। और जब काफिला होगा ऐसा तो समां बंधेगा कैसा? हां, कहना चाहता हूं कि समां तो खूब बंधेगा, पर काम कुछ नहीं होगा। जी हां, काम ऐसे होता ही नहीं है। ऐसे कहीं काम होता है क्या? यह तो सरकारी पैसे से चुनाव की तैयारी का फंडा है। बिहारी फंडा? हींग लगे न हल्दी, रंग भी चोखा आये। वाहवाही, तालियां, जिंदाबाद यानी मकसद पूरा। ग्रेट इंडियन तमाशा, लागू हो जाये पूरे देश में भई।
उधर, रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव। ठेठ गंवई स्टायल। प्रतिद्वंद्वी पर पलटवार। प्रतिद्वंद्वी दो। नीतीश कुमार और रामविलास पासवान। घूम रहे हैं जिला दर जिला। रेल का सहारा। कर रहे हैं घोषणा दर घोषणा। रेलवे के मुहाने को खोल दिया है बिहार की ओर। फायनल पारी। चुनाव में जीतना जो है। कहीं लाइनें बिछ रही हैं तो कहीं रेलमंडल खुल रहे हैं। गाड़ियों के फेरे से काम नहीं चल रहा तो गाड़ियां ही बढ़ायी जा रही हैं। अभी आपने देखा होगा कि भाई साहब ने बजट और अंतरिम बजट का अंतर ही खत्म कर डाला। चार महीने बनाम पांच साल की घोषणा तक रेल बजट में की गयी। यह चुनावी अखाड़े के पहलवान की ललकार थी, जिसे पूरे हिंदुस्तान ने सुनी और समझी, बिहार ने तो शिद्दत से महसूस भी किया। अब चौक-चौराहों पर लालू ही लालू हैं। वाहवाही, तालियां, जिंदाबाद यानी मकसद पूरा। ग्रेट इंडियन तमाशा, बिहारी फंडा। लागू हो जाये पूरे देश में भई।
और अपने राम विलास पासवान। रेल नहीं मिली तो सेल ही सही। बेतिया जाकर खुलवा दिया स्टील प्लांट। टार्गेट फिक्स, सालोसाल की बात तो छोड़िये, कुछ ही महीनों में आने लगेंगे उत्पादन। अधिकारी बेचारे हलकान हैं, परेशान हैं, पर काम तो करना ही है। नेताजी की इज्जत का सवाल है। सेहत सुधारने की दिशा में बिहार सरकार बहुत कुछ कर रही है, कोई बात नहीं, केन्द्र से प्रोग्राम आ रहे हैं, कोई बात नहीं, नेताजी तो गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले शिविर खोलकर लोगों का इलाज करवाएंगे ही। अब कोई सोचता हो तो सोचे कि आखिर सेल को लोगों के इलाज से क्या मतलब, वह भी मुफ्त? मगर, नहीं। नेताजी को तो मतलब है। अब रेल नहीं, सेल ही सही, नीतीश-लालू को ललकारना जो है। जनता बिना सेवा क्या सुनेगी? ललकार खूंखार हो चुकी है। मंच पर हमेशा साथ दिख रहे हैं सूरजभान, जिनका कहना है कि लोग जब उन्हें बास कहता है, किंग कहता है तो अच्छा लगता है। और सबसे बड़ी खासियत। तीनों नेताओं का टार्गेट वोट एक ही है। दलित जाति, पिछड़े लोग। अब इसमें कांग्रेस ने अपना वजूद खो दिया, भाजपा की मिट्टी पलीद होने पर लगी है तो कोई क्या करे? फिलहाल इतना ही। ग्रेट इंडियन तमाशा यानी महासंग्राम यानी आम चुनाव पर चर्चा जारी रहेगी। धन्यवाद।