सोमवार, 24 नवंबर 2008

इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं

मालेगांव धमाके की जांच कर रही एटीएस बड़ी जल्दबाजी में है। रोज-रोज नए-नए खुलासे कर रही है। ऐसा जताया जा रहा है जैसे एटीएस बड़ी समझदारी के साथ गुत्थी सुलझाती जा रही है। हर खुलासे को मीडिया मैं जोर-शोर से उछाला जा रहा है। एटीएस और मीडिया की भी भाषा इन खुलासों को लेकर ऐसी ही होती है, जैसे ki बिना मुकदमा चलाए, बिना अदालत ka फैसला आए- निर्णय सुना दिया गया हो। एटीएस ने जिसकa नाम भर ले लिया वह अपराधी। समझ में नहीं आता ki एटीएस खुलासा करने ke मामले में इतनी जल्दबाजी क्यों बरत रही है? हो सकता है, एटीएस जो खुलासे कर रही है-सच हों। उसke पास सुबूत हों, तथ्य हों। पर इन तथ्यों और सुबूतों को अदालत में परखा जाना तो अभी बाकी है। अदालत में यह तय होना अभी बाकी है ki क्या वास्तव में ये सारे लोग आतंकी हरकतों यानी धमाको में लिप्त हैं, जिनका नाम एटीएस ले रही है। lekin इससे पहले ही पूरी दुनिया में यह संदेश जा chuka है ki भारत में हिंदुओं ने भी आतंकवादी संगठन बना लिया है। इस आतंकी संगठन से जुड़े लोग धमाके कर रहे हैं। ऐसा है या नहीं, इसके पक्ष-विपक्ष में तमाम तर्क दिए जा रहे हैं। इन बातों को छोड़ दें तो जब तक अदालत ka फैसला आएगा पूरी दुनिया में यह बात स्थापित हो चुकी होगी िक भारत के हिंदू जवाबी आतंकी कार्रवाई कर रहे हैं। मान लिया जाए िक अदालत एटीएस द्वारा बताए जा रहे सभी आरोपियों को निर्दोष मान ले, तब क्या यह स्थापना खत्म की जा सकेगी? क्या तब हिंदू आतंकवादी शब्द, जिसे मीडिया में जोर-शोर से उछाला जा रहा है, खत्म हो जाएगा? या यह धब्बा तब भी बना रहेगा। इसके उलट यह मान लें िक अदालत में साबित हो जाता है िक एटीएस ·के द्वारा बताए गए और गिरफ्तार सभी लोग धमाकों में शामिल रहे हैं। तब भी कुछ सवाल हैं-क्या गिरफ्तार kiye गए पुरोहित, साध्वी, दयानंद जैसे चंद लोग पूरे हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं? आखिर हिंदू आतंकवादी क्यों, सिर्फ अपराधी या आतंकवादी क्यों नहीं? हां, यही आपत्ति मुस्लिम आतंकवादी कहने पर भी लागू होना चाहिए। और ऐसी आपत्तियां पूरे विश्व में जोर-शोर से उठती भी रहती हैं। ध्यान देने वाली बात यह भी है ki जब कश्मीर के मुस्लिम युवक kiसी आतंकी कार्रवाई को अंजाम देते हैं तो समझदार माने/कहे जाने वाले लोग उसे भटके हुए चंद युवकों की कार्रवाई बताते हैं। आश्चर्य होता है ki वही समझदार लोग हिंदू आतंकवादी शब्द पर आपत्ति नहीं करते। एटीएस की थ्योरी सही भी हो तो यहां तो सचमुच चंद भटके हुए लोग हैं। एक जमाना था जब भारत में होने वाली हर आतंकी कार्रवाई के लिए पड़ोसी देश को जिम्मेदार ठहराया जाता था। बात-बात पर उसे आतंकियों को संरक्षण देने वाला देश कहा जाता था। हिंदू आतंकवादी शब्द को आज जिस जोर-शोर से प्रचारित kiya जा रहा है, कल को कोई भी पड़ोसी देश अपने यहां होने वाली आतंकी गतिविधियों के लिए हमें जिम्मेदार ठहराने लगे, तो क्या होगा? हमें सोचना ही होगा ki हमारी अभी ki जल्दबाजी के ऐसे भी परिणाम हो सकते हैं। खासकर मीडिया, अदालत के फैसले के पहले ही फतवा जारी करने की अपनी आदत से बाज आए। िकसी भी जांच एजेंसी की बातों को नतीजे जैसा प्रचारित करने की मीडिया की आदत पर रोक तो लगनी ही चाहिए। अन्यथा होता यह है ki आरोप को ही, जांच एजेंसी की बातों के आधार पर खासकर इलेक्ट्रानिक मीडिया चीख-चीखकर सत्य और तथ्य ka रूप दे देता है। दुखद तो यह भी है ki मीडिया में आरोपों की बात जितनी जोर-शोर से आती है, अदालत में आरोप खारिज होने पर मीडिया की आवाज उतनी ही धीमी होती है। इतनी धीमी ki अधिसंख्य लोग तो उसे सुन भी नहीं पाते।