सोमवार, 16 जून 2008

बहुत शोर सुनते थे...

क्या विहिप इनदिनों राम मंदिर मुद्दे से कतरा कर निकलने कि ताक में है? या राम मंदिर के मुद्दे को एक औजार कि तरह अपने पास रखने के लिए इसे लटकाए रहना चाहती है? दरअसल दूसरा सवाल, पहले सवाल का जवाब है। राम मंदिर मुद्दे को लटकाए रखने के लिए विहिप फिलहाल इससे कतरा कर निकल जाना चाहती है। हरिद्वार में विहिप के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक का सोमवार को समापन हुआ। बैठक तीन दिनों तक चली। इस बैठक के पहले बहुत शोर हुआ इस बात का कि विहिप यहाँ राम मंदिर के निर्माण कि तिथि घोषित कर सकती है। तिथि तो घोषित नही की गई। अंतिम दिन यह जरूर कहा गया कि विहिप मंदिर निर्माण का मसला अगली संसद पर छोडती है। संदेश है कि अगले आम चुनाव में इतने रामभक्त या कहें मंदिर समर्थक जीतकर आ जायेंगे, जिससे कि मंदिर निर्माण में कोई अड़चन नही आएगी। इस संदेश को और साफ करें तो विहिप kअ मतलब है कि जिन्हें मन्दिर बनवाना है वे रामभक्त को ही चुनें। रामभक्त यानी बीजेपी के उम्मीदवार। जाहिर सी बात है, विहिप तिथि का ऐलान भले कर ले, वह फिलहाल मंदिर bअनवाने कि स्थिति में नही है। स्थिति जो भी उसे तो राम मंदिर के नाम पर वोट cहहिये, जिसके लिए विहिप तमाम तरह के प्रयत्न करती रहती है। ऐसे में विहिप की इस लटकाने वाली निति का अर्थ है कि तिथि घोषित कर, फिर मंदिर बनवाने में नाकाम रहकर अपने ऊपर धोखाधड़ी का आरोप नहीं लगने देना चाहती है और लोगों की आस भी बंधाये रखना चाहती है। यही वजह है कि तीन दिनी बैठक में विहिप ने हिंदू आस्था के अन्य मुद्दों पर बातें की। जैसे गंगा मुक्ति और मंदिर मुक्ति की। विहिप ने उत्तरकाशी में धरने पर बैठे पर्यावरणविद डॉक्टर गुरुदास अग्रवाल को समर्थन कर ऐलान किया। अग्रवाल बिजली के लिए गंगा के प्रवाह को रोकने के खिलाफ धरने पर बैठे हैं। विहिप ने दूसरा मुद्दा उन मंदिरों कर उठाया जिनका सरकार ने अधिग्रहण कर लिया है। विहिप कर कहना है, सरकार (केन्द्र की) इन मंदिरों- मठों को मुक्त करे। जाहिर है विहिप आस्था के मुद्दों को छोड़ना नहीं चाहती और राम मंदिर मुद्दे को औजार की तरह इस्तेमाल करना चाहती है। हालांकि इससे विहिप के उन समर्थको को निराशा भी हुई है जो हरिद्वार की बैठक में तिथि घोषित होने की उम्मीद पाल बैठे थे.