१० मार्च १९९० को लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने। इसके पहले यहां कांग्रेस का शासन था। ऐसा नहीं था कि नरसंहारों का सिलसिला लालू के कार्यकाल से ही शुरू हुआ। नरसंहार की पहली वीभत्स घटना १९७७ में पटना जिले के बेलछी में घटी थी और इसके बाद तो जैसे यहां हिंसा-प्रतिहिंसा का दौर चल पड़ा। कांग्रेस की सरकारों में नरसंहारों पर रोक लगाने की इच्छाशक्ति का घोर अभाव था, क्योंकि इस शासक शक्ति के सामाजिक आधार इन्हें दूर तक जाने की इजाजत नहीं देते थे। दस वर्षों में कांग्रेस यहां छह मुख्यमंत्री बदल चुकी थी। आपरेशन सिद्धार्थ समेत कई घोषणाएं की गयीं, पर सभी कागज पर ही रह गयीं। मुख्यमंत्री बनते ही लालू ने भी यही काम शुरू कर दिया। उन्होंने दलितों को हथियारबंद करने, भूमि सुधार कार्यक्रमों को लागू करने, मध्य बिहार में शांति बहाल करने के लिए पदयात्रा करने आदि की कई घोषणाएं कीं, पर इनमें से एक पर भी अमल नहीं हुआ। नतीजा, १९९० से ही शुरू हो गया सूबे में नरसंहारों का सिलसिला, जो गुजरते लम्हों के साथ बेकाबू होता चला गया।
१९९० की शुरुआत में ही रोहतास के केसारी में सामंतों में दस दलितों को मार डाला। २६ मार्च को जहानाबाद के लखावर में पांच दलित मारे गये। २० जुलाई को मधुबनी के हरलाखी में सामंतों ने पुलिस के साथ मिलकर मजदूर वर्ग के छह लोगों को मौत के घाट उतार डाला। २६ जुलाई को रांची (तब बिहार में ही था) के हेसार में पुलिस ने तीन लोगों को मार डाला। १७ दिसंबर को दरियापुर (पटना) में किसान संघ के कार्यकर्ताओं ने चार लोगों व १९ फरवरी १९९१ को पटना के तिखरखोरा के १४ लोगों की हत्या कर दी। ७ जनवरी १९९१ को वैशाली जिले के पहाड़पुर गांव में अपराधी तत्वों ने ७ लोगों को मार डाला। विष्णुपुर ढाबा (बेगूसराय) तथा हरपुर सैदाबाद (समस्तीपुर) में ३ फरवरी को पुलिस ने क्रमशः ७ और ३ तीन लोगों को भून डाला। सनलाइट सेना ने ४ जून १९९१ को पलामू के मलवरिया में नौ लोगों को मौत के घाट उतारा। १२ जुलाई १९९१ को अपराधी गिरोह की ओर से संग्रामपुर (सारण) में चार लाशें गिरायी गयीं। जद समर्थकों ने ११ अप्रैल १९९१ को गया के बेलागंज में तीन लोगों को मार डाला। भोजपुर के देवसहियारा में सामंतों ने २२ जून १९९१ को १४ लोगों को मार डाला। १३ जुलाई १९९१ को पुलिस ने मुठभेड़ में मधुबनी के बेनीपट्टी में चार मजदूरों को भून डाला। १९ अक्टूबर को मुजफ्फऱपुर के बेनीबाद में पुलिस की गोली से सात लोग मारे गये। २५ अगस्त १९९१ को पुलिस ने सहरसा के गोदरामा में तीन लोगों को भून डाला, वहीं, सवर्ण लिबरेशन फ्रंट ने जहानाबाद के बावन बिगहा में २१ सितंबर १९९१ को सात लोगों को मौत के घाट उतार डाला। इसी साल जहानाबाद के मेन बरसिम्हा में नौ लोग, करकट बिगहा (पटना) में चार लोग, तिनडीहा (गया) में ७ लोग मार डाले गये।
नये साल १९९२ की शुरूआत बारा नरसंहार से हुई। बारा में १२ फरवरी को एमसीसी समर्थकों ने ३९ लोगों को मार डाला। ३० जून को गोपालगंज के चैनपुर में सामंतों ने पांच तथा एकवारी (भोजपुर) में सामंतों ने १२ सितंबर को ४ लोगों की हत्या कर दी। १९९२ का अंत शहाबुद्दीन समर्थकों के तांडव से हुआ। २२ दिसंबर को शहाबुद्दीन समर्थकों ने जीरादेई (सीवान) में ४ लोगों की हत्या कर दी। यह सिलसिला थमा नहीं। पुलिसकर्मियों ने १७ मार्च १९९४ को नाढ़ी (भोजपुर) में नौ लोगों को मुठभेड़ में मार गिराया। ४ अप्रैल १९९५ को रणवीर सेना की ओर से भोजपुर के खोपिरा में चार लोगों की लाशें गिरायी गयीं। सामंतों ने ६ जुलाई १९९५ को करमौल बमनौली (सीवान) के छह लोगों को मार डाला। रणवीर सेना ने २५ जुलाई १९९५ को सरथुआ (भोजपुर) में ६ लोगों की हत्या की। ५ अगस्त १९९५ को गंगा सेना की ओर से नोनउर (भोजपुर) के छह लोग मारे गये। वर्ष १९९६ तो नरसंहारों का ही वर्ष रहा। रणवीर सेना ने ७ फरवरी १९९६ को चांदी (भोजपुर) में ४, ९ मार्च को पतलपुरा (भोजपुर) में ३, १२ मार्च को नोनउर में ५, ५ मई को नाढ़ी में ३, ९ मई को इसी गांव में फिर ३, ११ जुलाई को बम्पानी टोला (भोजपुर) में २१, २६ नवंबर पुरहारा (भोजपुर) में ५ तथा २४ दिसंबर को एकबारी (भोजपुर) में ६ लोगों की सामूहिक हत्या की। इसी वर्ष शहाबुद्दीन समर्थकों द्वारा १४ सितंबर को भवराजपुर (सीवान) के ३ तथा ११ दिसंबर को मनिया (सीवान) के ५ लोगों की हत्या कर दी गयीं।
अगले साल राबड़ी देवी के कार्यकाल में पहली दिसंबर १९९७ को रणवीर सेना द्वारा बाथे नरसंहार में ६४ लोगों तथा रामपुर अहियारा चौरम में एमसीसी समर्थकों द्वारा ९ सवर्णों को जीप से खींचकर खत्म कर देने जैसी जघन्यतम घटनाओं को छोड़ भी दिया जाय तो क्या नहीं लगता कि खुद को भगवान कृष्ण का अवतार कहलाने में खुशी महसूस करने वाले लालू प्रसाद यादव के राज में बुद्ध, महावीर की धरती इंसानी लाशों से पटती जा रही थी? अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित १ दिसंबर के बाथे नरसंहार के जिम्मेवार रणवीर सेना के राजनैतिक रिश्तों की जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग के गठन की बात की गयी। आयोग का कार्यकाल जून १९९८ में समाप्त हो गया तो छह महीने ३१ दिसंबर तक के लिए उसे बढ़ाया गया। जांच आयोग का काम शुरू ही नहीं हो पाया। क्यों? क्योंकि आयोग को इस काम के लिए कर्मचारी ही नहीं मिले। कार्यालय के लिए मकान का आवंटन नवंबर में किया गया। इस नरसंहार के बाद मध्य बिहार में कानून व्यवस्था की स्थिति बनाये रखने के लिए विशेष टास्क फोर्स के गठन की बात कही गयी। यह टास्क फोर्स संचिका में ही कैद रह गयी। उग्रवाद प्रभावित मध्य बिहार में विकास कार्यक्रम चलाने के लिए सौ करोड़ रुपये की योजना तैयार की गयी। योजना कहां चली गयी, किसी को पता नहीं है। बिहार सरकार ने अपने एक दस्तावेज में स्वयं स्वीकार किया था कि सड़क निर्माण से संबंधित दो दर्जन से अधिक घोषित परियोजनाओं में निविदाएं नहीं आयीं, क्योंकि उग्रवादी संगठनों ने निविदा देने वालों से निपट लेने की धमकी दी थी।
फिलहाल इतना ही। लालू प्रसाद यादव के सवाल के बहाने जवाबों की तलाश में इतिहास को खंगालने का सिलसिला अभी जारी रहेगा। अगली पोस्ट में पढ़िए-राबड़ी राज - डेढ़ वर्षों में डेढ़ दर्जन नरसंहार।
गुरुवार, 26 फ़रवरी 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
6 टिप्पणियां:
कौशल जी, आपने काफी मेहनत के साथ एक बढ़िया आलेख लिखा है। आपका आलेख बताता है कि बिहार की हालत क्या हो गई थी। यह लालू यादव के सवाल का जवाब तो है ही, कई अन्य लोगों की आवाज भी है। इस बेहतर प्रस्तुति के लिए आपको बधाई। आपके अगले लेख का इंतजार है।
बिहार के बारे में अच्छी जानकारी दी है। बिहार के हालातो पर अच्छा प्रकाश डाला है।अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा।
अभी मैं बहुत व्यस्त हूँ. मेरा अखबार शनिवार को लांच हो रहा है. इसलिए बिना पढ़े ही मैं कह रहा हूँ, बहुत अच्छा होगा. आप लिखते जाइये. मैं इकट्ठे अगले सप्ताह सब पढ़ डालूँगा. मैंने नागपुर से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक समाचार रत्न में प्रथम पेज पर आपका आलेख --दादा आप ऐसे नहीं थे -- का प्रकाशन करवा दिया है. आपकी कीर्ति बिहार से महाराष्ट्र तक पहुंचे, यही मेरी कोशिश और कामना है. आप तो मेरे मित्र और बड़े भाई हैं, न पढने के लिए माफ़ करेंगे
अरविंद जी, आपकी टिप्पणी से अभिभूत हूं। छोटे भाई का फर्ज आप बखूबी निभा रहे हैं, यह जानकर संतोष हुआ। आपका अखबार बेहतर ढंग से लांच हो और नित नया मुकाम कायम करे, इसी कामना के साथ। समाचार रत्न की एक कापी भिजवाने का कष्ट करते।
aap jo mahat kaary kar rahe hain...aapko asankhy shoshit bihaarvasiyon kee dua lagegi...
Jari rakhen...
Kaash laloo aur unke sahyogi yah padh payen,to unhe uttar dhoondhne kahin aur nahi jana padega.
बहुत ही सटीक लिखा, काश ओर भी लिखते, ताकि हम सब को असली चेहरा भी दिखता ...
आप का बहुत धन्यवाद इस सुंदर ओर सटीक लेख के लिये
एक टिप्पणी भेजें