मेरी पिछली बातों (खुद को भी तो बदलिए) का संदभॆ लेते हुए ब्रजेश, चंद्रा एक बात स्पष्ट कर लें कि नेता, अधिकारी या व्यापारी कोई आसमान से नहीं आते। आम लोगों यानी पब्लिक के बीच से ही आते हैं। पिछली बातों से अगर यह भी साफ नहीं हो पाया कि देश, समाज और व्यवस्था सुधरे, इसके लिए क्या करें तो मैं कोशिश करता हूं कि और सहज शब्दों में बात करूं। आपके जैसा, मेरे जैसा, उनके जैसा हर आदमी सुधर जाए। भ्रष्टाचार, अनाचार और विध्वंस से तौबा कर ले तो पूरा समाज सुधरेगा, व्यवस्था सुधरेगी। बुराइयों और इसके लिए जिम्मेदार लोगों को सिफॆ कोसने की जगह बुराइयों को खत्म करने का प्रयास हम खुद करें, तो ही स्थिति सुधरेगी।
यह बात बहुत बार कही गई है। फिर भी कहता हूं। गली में कुछ ईंटें पड़ी हैं। एक ईंट से आपको ठोकर लगती है। आप गिर जाते हैं। आप गाली देते हैं। पता नहीं किसने ईंटें रास्ते पर फेंक दी। इतना भी शऊर नहीं है। यह कहकर आगे बढ़ जाते हैं। आपके पीछे आने वाले और भी लोग ईंट से टकराते हैं। आपका ही अनुसरण करते हैं। आगे बढ़ जाते हैं। समस्या जस की तस है। कोसने, गाली देने के बावजूद।...तो इतना तय है कि कोसने, गलियाने से समस्या दूर नहीं होती। अब कोई और व्यक्ति आता है। वह ईंटें उठाकर तरतीब से किनारे रख देता है। उसके ऐसा करते ही यह तय हो गया कि अब और आने वाले लोग उन ईंटों से नहीं टकराएंगे। मतलब समस्या दूर करने के लिए थोड़ा वक्त देना होगा। थोड़ी मेहनत करनी होगी। भाषण देने से अलग। साथ ही ..हमें क्या मतलब का भाव त्यागना होगा।
मान लें आपको किसी सरकारी दफ्तर में काम है। वक्त लग रहा है। आप समथॆ हैं। दफ्तर के कलकॆ को कुछ पैसे देते हैं। आपका काम हो जाता है। इसके बाद भी देश, समाज में फैले भ्रष्टाचार पर आप लंबा-चौड़ा व्याख्यान देंगे। अधिकारियों, नेताओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहराएंगे। मन नहीं भरा तो देश की आजादी को बेमानी ठहराएंगे। ...क्या कहने की जरूरत है कि सवॆत्र व्याप्त भ्रष्टाचार के लिए आप या कोई और घूस देकर काम करवाने वाला भी जिम्मेदार है? सोचें जरा, हर आदमी रिश्वत देना बंद कर दे तो भी क्या रिश्वतखोरी जारी रहेगी? क्या सरकारी बाबू, अधिकारी काम करना ही बंद कर देंगे? रिश्वत देना बंद कर दिया जाए तो भी काम होंगे। कुछ दिनों तक का संक्रमण काल हो सकता है। निश्चित रूप से यहां ऐसा सोचना ठीक नहीं होगा कि केवल मेरे घूस नहीं देने से क्या होगा। वो गाना याद है..मिले जो कड़ी-कड़ी, एक-एक जंजीर बने...। (शायद ऐसा ही कुछ)
मिलावटखोरी बड़ी समस्या है। सब इससे त्रस्त हैं। मसाले में भी मिलावत होती है। मसाले में मिलावट करने वालों को वह भी गाली देता है, जो रोज दूध में पानी मिलाकर बेचता है। और मसाले में मिलावट करने वाला पतला दूध देखकर, पीकर पानी मिलाने वालों को गलियाता होगा। ...यह सिफॆ यह बताने की जरूरत है कि भ्रष्टाचार की जड़ें यही हैं। हमारे आपके आसपास। हमें मिलावटी मसाला नहीं खाना है तो दूध में पानी मिलाना भी बंद करें। केवल मसाले में मिलावट करने वालों को गलियाने से काम नहीं चलेगा।....जरा यह भी तय करें कि इस मामले में सरकार कितनी गैरजरूरी है।
बात खत्म नहीं हुई है। संभव हुआ तो इस चरचा को जारी रखना चाहूंगा।
4 टिप्पणियां:
कुछ तो बात आगे बढ़ी है। मगर, रास्ता अभी लंबा है। जोत जगाये रखिए।
मेरे नाम के साथ आपने अपना आलेख शुरू किया, मैं गौरवान्वित हुआ। पढ़कर अच्छा भी लगा। बातें तो आपकी सही है पुरुषोत्तम जी, पर दिक्कत यह है कि भ्रष्टाचार आज यहां के नस-नस में समाहित हो चुका है। भ्रष्टाचार से खुद को एक आदमी कैसे रखे दूर, इसका भी उपाय बताइए।
सही है। हमें ही सुधरना होगा। एक-एक व्यक्ति सुधर गया तो अहा, कैसा देश होगा अपना।
जनता को चेताती एक अच्छी रपट, लेकिन क्या आप खुद इन बातों पर अमल करते हैं, यह भी बताएं। खुद को संभालने की दिशा में आपके कुछ व्यक्तिगत अनुभवों को भी पढ़ना चाहूंगा। क्या आप उन अनुभवों से हमें लाभान्वित करना चाहेंगे?
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