हिन्दी ब्लागिंग पर तमाम बहसें होती हैं। कभी इस पर लिखे गए को साहित्य और असाहित्य मानने को लेकर तो कभी शुद्धियों और अशुद्धियों को लेकर। ये तो फिर भी अच्छी बहस है। बहस तो इस पर भी चलती है कि कौन किसका चमचा है। कौन किसके खेमे का है। कौन लड़कियों को अधिक टिप्पणी करता है और कौन पुरुषों को। नारी और पुरुष के बीच का विवाद तो ब्लागजगत में जगजाहिर है। हिंदू-मुसलिम सदभाव को बिगाड़ने का खेल भी ब्लागजगत में धूमधाम से जारी है। मौलिकता की तमाम मिसालें ब्लागजगत में मिल जाएंगी। ब्लागजगत के सिद्धहस्त लोगों ने एक दायरा बनाया है। उसे वे तोड़ना नहीं चाहते। कई जगह तो लगता है कि कुछ भी लिखकर लोग सिर्फ टिप्पणियां पाना चाहते हैं।
ब्लागजगत और ब्लागरों पर लिखने का चलन तो कुछ ऐसा है कि इस चलन में शामिल होने से हम भी खुद को रोक नहीं पाए। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि सत्तर फीसदी ब्लाग लेखन में सिर्फ लेखक की कुंठाएं झलकती हैं। आप कहीं अपनी वजह से पिट गए और आपको बचाने कोई वहां नहीं आया तो आप सारी दुनिया को कोस रहे हैं कि दुनिया में कोई मददगार नहीं रहा। आप कोई संस्था चलाते हैं, कर्मचारियों का शोषण करते हैं और कोई कर्मचारी आपके खिलाफ आवाज उठा गया तो आप सभी कर्मचारियों को मालिक का पिट्ठू बने रहने की नसीहत देते चल रहे हैं। आपको एमबीबीएस का फुल फामॆ मालूम नहीं है और आप सारी बीमारियों का इलाज बताते चल रहे हैं। आपने कभी कोर्ट नहीं देखा, कचहरी नहीं देखी और आप सारी दुनिया को कानून पढ़ाते चल रहे हैं। जी हां, अधिकतर ब्लागों पर कुछ इसी तरह का तमाशा दिख रहा है।
ब्लाग पर कुछ हम भी लिखते हैं और इसी सिलिसले में अन्य ब्लागों को पढ़ते भी हैं। सबसे ज्यादा दुख तो तब होता है जब लोगों को अपने घर के किस्से भी ब्लाग पर सार्वजनिक करते देखा जाता है। उफ, कोई मर्यादा नहीं, कोई सीमा नहीं। जिस तरह से ब्लागचर्चा प्रसिद्धि पा रही है, अखबारों के संपादकीय पन्नों का हिस्सा बन रही है, वैसे समय में अब ब्लाग पर क्या लिखा जाए, क्या नहीं लिखा जाए, यह तय किया जाना चाहिए। यह जरूरी लगता है। पर, यह सीमा तय करेगा कौन? बेहतर तो यह होता कि अनर्गल प्रलाप की जगह ब्लाग को भय, भूख और भ्रष्टाचार से समाज को बचाने का माध्यम बनाया जाता। ब्लागों पर समाज में व्याप्त कुरुतियों से लड़ने का कोई नया तरीका सामने आता। फिलहाल इतना ही। बहस जारी रहेगी। इस बहस में शामिल होने का खुला आमंत्रण है।
पुरुषोत्तम, कौशल
रविवार, 30 अगस्त 2009
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8 टिप्पणियां:
sahi likha hai aapne
aapke paas koi maanak ho to bataiye samajh me aaya to samarthan karenge
venus kesari
शुरु करें इस दिशा में अपनी तरफ से कुछ घोषित करने की पारी...
सहमत हूँ आपसे कौशल जी।
क्या आपको नही लगता कि किसी प्रकार का मानक ना होना ही ब्लाग की सबसे बडी USP है।
क्यों इसे मानकों के फेर में डाल रहे हैं?
किसी प्रकार का मानक ना होना ही ब्लाग की सबसे बडी USP है।
मानक की नाक में नकेल,
ब्लॉग पर सब मानक फेल,
अरे भाई आज की दुनिया में आप किसी की कोई सीमा नहीं बना सकते, हां अपनी एक रेखा ज़रूर खींच सकते हैं. कोई क्या लिखना या दिखना चाहता है, इस पर हमारा-आपक कोई वश नहीं है, न हो सकता है. पर हम क्या पढ़ेंगे या क्या नहीं, इस हमारा पूरा हक़ है. जो फ़ालतू है उसे पढिए ही नहीं. एक-दो बार भूल से चले गए उनके दरवाजे तो कोई बात नहीं, आगे से जाइए ही नहीं.
बेमानक होना ही
सबसे बड़ा मानक है
ब्लॉग की आग का
बेपरवाह बढ़ती रहती है।
मत बांधों इसे
बाकी को तो बांध चुके हो।
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