शुक्रवार को संसद में रेल बजट पेश करते रेल मंत्री ममता बनर्जी ने रेलवे में एकीकृत सुरक्षा प्रणाली और महिला कमांडों की संख्या बढ़ाने पर बल तो दिया, पर मुंबई जैसे आतंकी हमलों से रेल यात्रियों को बचाने का तंत्र कैसा होगा, इस पर उन्होंने कुछ नहीं कहा, जबकि रेल यात्रियों को आतंकियों से बचाना भारत में आज एक बड़ी चुनौती बन गयी है। तीन साल पहले मुंबई ट्रेन में हुए धमाके और समझौता एक्सप्रेस कांड के बाद रेलवे स्टेशनों व ट्रेनों की सुरक्षा की कवायद शुरू हुई थी। पिछले साल 26 नवंबर को मुंबई हमले के दौरान उस पूरी कवायद की पोल खुल चुकी है। तब से लेकर अब तक बातें तो बहुत हुईं, लेकिन रेलवे ठोस कुछ नहीं कर सका। इस बार ममता दीदी से बड़ी उम्मीद थी, पर वे तो इस ओर से कन्नी ही काट गयीं।
ममता दीदी को याद दिलाना चाहूंगा कि देश के छोटे-छोटे जंक्शनों की तो बात दूर, मेट्रोपोलिटन शहरों नयी दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता तक के रेलवे स्टेशनों पर बिना टिकट घुसना आम है और इस पर कोई अंकुश नहीं लगाया जा सका है। यहां तक कि बड़े रेलवे स्टेशनों की चारों तरफ पुख्ता चहारदीवारी तक नहीं बनायी जा सकी है। इतना ही नहीं, सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम के तहत बड़े रेलवे स्टेशनों के सभी प्रवेश द्वारों पर स्कैनर लगाने थे, जो नहीं लगाये जा सके हैं। उम्मीद थी कि सुरक्षा के इन छोटे-छोटे बिंदुओं पर ग्रास रूट से राजनीति के शिखर पर पहुंचने वाली ममता दीदी का ध्यान जाता और इसके लिए रेल बजट में प्रावधान किया जाता, पर ऐसा नहीं हो सका। सुरक्षा के इन छोटे-छोटे, पर महत्वपूर्ण कदमों के बारे में रेलवे बजट पूरी तरह चुप है। इन सभी खामियों के बावजूद ममता दीदी ने बजट भाषण में यात्रियों को रेल से लेकर स्टेशन और उसके बाहर तक की सुरक्षा का दावा किया है। यह सुरक्षा कैसे होगी और इसके लिए धन कहां से आयेंगे, इसका शुक्रवार को संसद में पेश बजट कोई जवाब नहीं दे पाता। फिलहाल, इस मुद्दे को एक सवाल के रूप में ममता दीदी के समक्ष तो रखा ही जा सकता है कि आखिर आतंकी मामलों पर रेल बजट चुप क्यों है?
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3 टिप्पणियां:
पता नही.लेकिन आप ने लेख अच्छा लिखा है
अच्छा सवाल.
Ek mahatvpurn sawal uthaya hai aapne.
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