प्रदेश में ट्यूबवेल लगे हों और वे पानी न उगलें तो इसमें दोष किसका है? प्रदेश सूखे की चपेट में हो और उससे निपटने के लिए ट्यूबवेलों से पानी खोजा जाय और ऐन मौके पर पता चले कि हाय, दो तिहाई ट्यूबवेल तो पानी उगलने की स्थिति में हैं ही नहीं, तो इसमें दोष किसका है? आप पिछली सरकार पर भ्रष्टाचार की तोहमत लगाते हैं, आप केन्द्र सरकार पर उपेक्षा की तोहमत लगाते हैं और आपने क्या किया? आपकी सरकार के भी तो चार साल से ऊपर हो चुके हैं। इसके बावजूद इन ट्यूबवेलों की ऐसी हालत क्यों है? बात बिहार की कर रहा हूं और मुखातिब वहां के विकास पुरुष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी से हूं।
नीतीश जी, बुधवार को विधानसभा में लघु जल संसाधन मंत्री दिनेश प्रसाद कुशवाहा ने सूखे से निपटने में कारगर यंत्र ट्यूबवेलों की जो तस्वीर पेश की, उससे आपकी सरकार की भी क्या लापरवाही उजागर नहीं होती है? कुशवाहा द्वारा पेश आंकड़ों को फिर से यहां रखना चाहूंगा। उनके मुताबिक सूबे के 5147 ट्यूबवेलों में से सिर्फ 1719 ही कार्यरत हैं। यानी सूबे में खेतों की प्यास बुझाने के लिए लगाये गये दो-तिहाई नलकूप ठप हैं, इसे सरकार ने भी मान लिया। जब सूखा गहरा गया, बिचड़े सूख गये, तब ट्यूबवेलों का हिसाब-किताब लिया जा रहा है, यह भी क्या कम त्रासद है? नीतीश जी, इन ट्यूबवेलों की जर्जरता आपकी सरकार के चौथे साल पूरे हो जाने के बाद भी बरकरार है। ऐसा क्यों है, सवाल यह है। कुशवाहा जी की तरह आप भी कह सकते हैं कि अधिकतर ट्यूबवेल 1955-56, 1964-65 और 1973-74 के बीच के लगे हैं। पर, क्या जनता इस जवाब को मान ले?
मुख्यमंत्री जी, अब सूखे से निपटने के लिए आकस्मिक योजना बनाने और रोजाना अनुश्रवण होने का दावा किया जा रहा है। मंत्री ने ही बताया कि मौसम के मिजाज को देखते हुए सरकार 1119 ट्यूबवेलों को चालू करने की योजना पर काम कर रही है। सौ को चालू बताया गया, जबकि सौ के पुनर्स्थापन का काम प्रगति पर होने का दावा किया गया। 919 के लिए सरकार ने नाबार्ड से मदद मांगी है। विद्युत दोष से बंद ट्यूबवेलों को चालू करने के लिए प्रत्येक दिन मुख्य सचिव, विभागीय सचिव और विद्युत बोर्ड के चेयरमैन की बैठक होने का दावा किया गया। मोटर जलने पर उसे तत्काल बदल दिया जाय, इसके लिए हर जिले में पांच-पांच अतिरिक्त मोटर का इंतजाम किया गया है। जहां नाली खराब हो गयी है, उसे दुरुस्त करने के लिए हर ट्यूबवेल को 20-20 हजार रुपये दिये जाने की बात कही गयी है।
सवाल यह उठता है मुख्यमंत्री जी कि ट्यूबवेलों की खोजबीन और प्रयास को लेकर यह सरकारी मशक्कत जुलाई के तीसरे हफ्ते (खत्म होते श्रावण महीने) में क्यों हो रही है? किसानों के अस्सी फीसदी बिचड़े जल चुके हैं। धान की आच्छादन दर सिमट चुकी है। एक तो रोपनी के लिए बिचड़े नहीं दिखते, दूसरे जिन्होंने लेट बिचड़े गिराये, वे भी निराशा की स्थिति में पहुंच चुके हैं। ऐसे में यह सरकारी प्रयास किसानों को कितना लाभ पहुंचा पायेगा, सवाल यह है? कुल मिलाकर इस बार की खरीफ फसल तो मारी ही गयी न? आसमान छूती महंगाई और बढ़ती गरीबी के बीच खरीफ फसलों का मारा जाना प्रदेश में कितनी बड़ी वाही-तबाही का कारण बनेगा, सवाल यह भी है? इस पर भी अभी से ही विचार करने की जरूरत है। सवाल यह है कि आने वाली तबाही पर कब विचार होगा? क्या तब, जब तबाही आकर गुजर जायेगी? ट्यूबवेलों की जर्जरता पर हो रहे विचार की तरह? ध्यान देने की बात यह भी है नीतीश जी कि तब तक प्रदेश में विधान सभा चुनाव भी आ जायेगा और लोग भी हिसाब-किताब में जुट जायेंगे। आपके चिर प्रतिद्वंद्वी लालू जी और रामविलास जी भी गलबहिया कर अब बिहार में ही मटरगश्ती कर रहे हैं, ख्याल इसका भी कीजिए।
बुधवार, 22 जुलाई 2009
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3 टिप्पणियां:
इसका मतलब नीतीश जी भी लफ्फाजी ही करते रहे हैं?
आखिर अपने पहले कार्यकाल में नीतीश को नलकूपों का खयाल तो आया। इसमें बुरा तो मुझे कुछ नहीं दिखता। चुनावों में नीतीश जी को इसका फायदा ही मिलेगा।
ठीक ही है। नीतीश जी के कार्यकाल की भी समीक्षा होनी ही चाहिए। आपने शुरूआत की है, यह सराहनीय कदम है।
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