लालू को सुनना सदा से ही दिलचस्प रहा है। ग्रेट इंडियन तमाशा ऊर्फ महासंग्राम ऊर्फ आम चुनाव में उनकी जुबां पर कुछ ज्यादा ही तुर्शी छायी है, मिजाज कुछ ज्यादा ही तड़क दिख रहा है। लालू यानी चारा घोटाला के आरोप में जेल जाने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री, वर्तमान में केन्द्रीय रेलमंत्री, तथाकथित मैनेजमेंट गुरु, हंसोड़-मजाकिया, पल भर में दुश्मन को दोस्त और दोस्त को दुश्मन बनाने-बताने में माहिर। लालू यानी कभी समाजवाद को जिंदा करने वाले जेपी का साथ देने वाला एक बेजोड़ अनुनायी भी। लालू को याद होगा कि इन्हीं समाजवादियों के प्रयास व एकजुटता से कभी देश की दुर्गा कही जाने वाली इंदिरा गांधी तक को चुनाव हार जाना पड़ा था। तब तो इंदिरा जी ने प्रलय मचाने की घोषणा नहीं की थी। लोकतंत्र में प्रत्याशियों के वश में परचा दाखिल करना और चुनाव लड़ना ही तो होता है। परिणाम तो जनता देती है। पब्लिक ने फैसला किया और इंदिरा ने हार को स्वीकार किया। और इंदिरा जी ही क्यों, बड़े-बड़े दिग्गज चुनाव लड़ते हैं और हार जाते हैं, पर कभी प्रलय आ जाने या मचा देने का ऐलान नहीं करते। मगर, लालू कर सकते हैं। अभी शनिवार को ही उन्होंने ऐलान किया है। उन्होंने कहा है कि यदि वे सारण या पटना से चुनाव हार गये तो प्रलय आ जायेगा।
लालू को सुनना जिन्हें दिलचस्प लगता होगा, उन्हें तो वाकई मजा आया होगा। हंसी फूटी होगी कि वाह, लालू ने क्या बोला है इस बार। मगर, लालू हंसी खेल में ही बड़ी-बड़ी बातें बोल जाते हैं, इसे सभी जानते हैं। चारा घोटाला के दौरान जब उन्होंने कहा था कि वे जेल गये तो वहीं से बिहार की सत्ता संभालेंगे तो लोगों ने हंसा था, मजाक उड़ाया था। मगर, उनके जेल जाते ही राबड़ी देवी जैसे ही गद्दी पर बैठीं, लोगों को लालू की बातों की गंभीरता समझ में आ गयी। अब लालू ने कहा है कि वे चुनाव हारे तो प्रलय आ जायेगा तो इसका भी बड़ा मतलब है। लोग भले हंस लें, पर इसका मतलब तो निकलेगा जरूर। क्या निकलेगा, यह उनके चुनाव हारने के बाद ही पता चल पायेगा। लोकतंत्र के मसीहा कहे जाने वाले लोग इससे पहले उनकी बातों का मतलब निकाल लें तो और बात होगी।
अगली बात। अभी थोड़े दिनों पहले इसी ग्रेट इंडियन तमाशे के दौरान वरुण गांधी ने कुछ उल-जुलूल बक दिया था और वह न केवल जेल चले गये, बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उन पर रासुका तक लगा दिया। यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन था। अब लालू जो बोल रहे हैं, उसे आयोग किस तरह ले रहा है? क्या यह आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है? वे इस बार के चुनाव में दो जगहों से मैदान में हैं। सारण में मतदान हो चुका है, जबकि पटना में चौथे चरण में मतदान होना है। सारण में मतदान समाप्त होने के बाद से ही यह चर्चा आम है कि लालू हारेंगे। चर्चा निश्चित रूप से लालू के पास भी पहुंची होगी। उन्होंने भी आकलन किया होगा। अब उनका घबराना यही बता रहा है कि उन्हें भी अपनी हार का अहसास हो रहा है। तो पटना सीट बचाने की मशक्कत अब उनके लिए वक्त की जरूरत बन गयी है। बताया जाता है कि पटना से भी लालू को तगड़ी टक्कर मिल रही है। ऐसे में ही उनका बयान आया है कि वे हारे तो प्रलय मच जायेगा। यह सरासर धमकी है। पर, वे धमकी किसे दे रहे हैं, यह समझने की जरूरत है। समझने की जरूरत यह भी है कि वे यह धमकी दे कैसे पा रहे हैं?
लोगों को याद होगा, एक केजे राव ने ठान लिया तो बिहार के चुनावों में चूं-चटाक तक नहीं हुआ था। पत्ता तक नहीं खड़का था। लालू को याद होगा कि एक यूएन विश्वास ने ठान लिया था तो चारा घोटाला की सारी परतें अपने आप खुलती चली गयी थीं और यही लालू जेल पहुंच गये थे। एक भरे-पूरे विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में एक लालू पूरे सिस्टम को चैलेंज नहीं कर सकते। समाज को धमकी नहीं दे सकते। लालू भले कहते रहें कि उनके हारने से प्रलय आ जायेगा, मगर वे मान लें कि कोई प्रलय नहीं आयेगा। समाज जब जागता है तो अच्छे-अच्छों को किनारे लगा देता है। लेकिन, यह तो बाद की बात है। ताजा मसला यह है कि जब देश के बड़े-बड़े दिग्गज आचार संहिता की मार से थर्राये चल रहे हैं, शब्दों और बातों तक से किनाराकशी किये घूम रहे हैं, वैसे में लालू की जुबां आग पर आग कैसे उगल पा रही है? उनके मन जो आ रहा है, बोले जा रहे हैं और खूब बोल रहे हैं। प्रलय की घोषणा के दौरान ही उन्होंने सुशील मोदी और नरेन्द्र मोदी को एक दूसरे का साढ़ू कहा। सवाल यह है कि उनकी इस जुबां पर कौन लगायेगा लगाम? कौन?? चुनाव आयोग उन्हें जेल पहुंचायेगा या प्रदेश सरकार उन पर रासुका लगायेगी?
रविवार, 3 मई 2009
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5 टिप्पणियां:
बढ़िया विष्लेशण....
गुंडे की गुड़ई और लालू की नंगई जब जायज है
अच्छा लिखा है आपने. वैसे भी लालू के बारे में मानकर चला जाता है की वह जो बोलें सो कम. यह अलग बात है की नियम तो सबके लिए एक ही होना चाहिए.
गुंडे मवाली से सुवचन और सुकर्म की आशा नहीं करनी चाहिए....सत्ता पैसे और सामर्थ्य ने उनके होशो हवाश छीन लिए हैं...
बहुत ही सही आलेख है यह आपका.....
वाह, रंजना जी, आपने सही और सटीक शब्दों का इस्तेमाल किया है। जरूरत जैसे को तैसा जवाब देने की ही होती है। कभी-कभी इससे भी स्थिति संभल जाती है। देरी होने से अविश्वास बढ़ता है।
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