मंगलवार, 7 अप्रैल 2009
कार्ड पर ट्रंप तो बौखलाहट बढ़ी
यह ग्रेट इंडियन तमाशे का ऐसा परिस्कृत और संशोधित बिहारी रूप है , जिसमें दुश्मन को दुश्मन की चाल से ही मात देने की तैयारी पूरी हो गयी है और अपने-अपने फन में माहिर फनकारों के भी छक्के छूटे हुए हैं। बौखलाहट में गाली-गलौज, आरोप-प्रत्यारोप, यहां तक कि उलटबासी बयानबाजियों के साथ केस दर्ज होने, जेल जाने और जमानत लेने का दौर तक शुरू हो चुका है। बातों की शुरुआत बिहार से और गलबहियां डाले घूम रहे राजद सुप्रीमो लालूप्रसाद यादव व लोजपा सुप्रीमो रामविलास पासवान बनाम कांग्रेस से की जाय। टिकट बंटवारे के वक्त ही लालू-रामविलास के मतलबी गठबंधन ने बिहार की चालीस सीटों में सैंतीस खुद रख ली और कांग्रेस के लिए तीन सीटें छोड़ दीं। इस पैंतरे के जवाब में अगले ही दिन कांगेस ने फुफकारते हुए सभी सीटों पर लड़ने की घोषणा करते हुए लालू-रामविलास गठबंधन के लिए तीन सीटें छोड़ीं तो इस दांव को गठबंधन ने मजाक समझा और मुस्कुराते हुए बातों को हंसी में उड़ा डाला। अब जबकि द्वितीय चरण के चुनाव के लिए नामांकन कंपलीट है और अन्य चरणों के लिए भी उम्मीदवारों के लिए तस्वीर लगभग साफ हो चुकी है तो गठबंधन पूरी तरह सकते में है। क्यों? दरअसल लालू-रामविलास को कांग्रेस ने उन्हीं की तर्ज पर जवाब देने की तैयारी में समर सजा दिया। तीन-सैतीस का मुकाबला वैसे तो अब चालीस-चालीस पर पहुंच चुका है पर मतलबी गठबंधन की जो सबसे बड़ी चिंता है, वह कांग्रेस का अपने पुराने चोले को उतार कर उसी रंग को अख्तियार कर लेने को लेकर है, जिस रंग में लालू-रामविलास खुद को रंगे बताते हैं। यानी कार्ड पर कार्ड और ट्रंप पर ट्रंप। लालू के साले साधु यादव ने जब परिवार से बगावत की तो कांग्रेस ने उन्हें शरण दे दी। अब उन्हें पश्चिमी चंपारण से टिकट देकर कांग्रेस ने सूबे के यादवों पर बड़े सलीके से डोरे डाल दिये हैं। इतना ही नहीं, यादव उम्मीदवारों को टिकट देने में कांग्रेस इस गठबंधन से आगे ही निकलती दिख रही है। उधर, राजद के माय (मुसलमान-यादव) के दूसरे टार्गेट मुसलमान भी कांग्रेस में तरजीह पा चुके हैं और उनके बीच अब तो प्रधानमंत्री कौन पर विचार चलने लगा है। मतलबी गठबंधन का अगला टार्गेट पिछड़ी जाति के लोग और सवर्ण दोनों हैं, जबकि शुरू से कांग्रेस का वोट बैंक रही इन दोनों जातियों में कांग्रेस के सूबे में खड़ा हो जाने से एक नयी आस जग गयी है। द्वितीय चरण में उत्तर बिहार की जिन बारह सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा पूर्ण हुई है, उसका आकलन करने से इसी तस्वीर का पता चलता है। वफापरस्ती के बदले जफापरस्ती का तर्जुमा कुछ यूं है कि लालू-रामविलास-नीतीश के बागी जिन्होंने भी दरवाजा खटखटाया, उन्हें कांग्रेस में टिकट मिला। साधु यादव, रमई राम, गिरधारी यादव, हिंदकेशरी यादव, लवली आनंद ऐसे ही कुछ नाम हैं। अब बौखलाहट देखिए। लालू की धर्मपत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने सारण में एक सभा को संबोधित करते हुए विकास मैन नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू के प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह को एक-दूसरे का साला-बहनोई कह डाला। नीतीश बौखलाये और एलान किया कि ऐसी गुंडागर्दी नहीं चलेगी। केस दर्ज हुआ और इस मामले की सीडी चुनाव आयुक्त दिल्ली ले गये। इस मामले का अभी एक ही दिन गुजरा कि पत्नी से एक कदम आगे बढ़ते हुए लालू जी ने पूर्णिया में एक सभा को संबोधित करते हुए यह कह डाला कि यदि वे गृह मंत्री होते तो वरुण गांधी को बुलडोजर से कुचलवा देते। यह भाषण कुछ वरुण गांधी के भड़काऊ भाषण जैसा ही तो था। अंजाम , लालू का गिरफ्तारी वारंट निकल चुका है। यानी ग्रेट इंडियन तमाशा बिहार में रवानी पकड़ चुका है। लोग आशंकित है। रवानी से नहीं, रवानी के रक्तरंजित हो जाने से, जिसके लिए बिहार कुख्यात रहा है औऱ जिस पर एक बड़े संकल्प और मशक्कत के साथ काबू पाने का सफलतम प्रयास चल रहा है। फिलहाल इतना ही। आम चुनाव को लेकर चर्चा जारी रहेगी।
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2 टिप्पणियां:
ानकारी देने के लिए धन्यवाद ... ये राजनीति है भई।
Rajniti me shayad ab kuch bhi achuta nahin hai.
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