शनिवार, 15 सितंबर 2012

दूरदर्शी कदम, तैयारी 2019 की

पिछले कई महीनों से भ्रष्टाचार व घपलों-घोटालों में घिरी, विरोधियों का विरोध झेल रही और विदेशी मीडिया तक में किरकिरी करा रही मनमोहन सरकार ने चुप्पी तोड़ी, गुस्सा निकाला और बड़ा संदेश दिया कि सरकार चाहे तो क्या नहीं कर सकती। हां, कुछ भी। पहले दिन डीजल पर दाम बढ़ाए और रसोई गैस का सालाना छह का लिमिट फिक्स किया। अभी देश सकते में ही डूबा था कि दूसरे दिन खुदरा में विदेशी दुकानों के लिए भी रास्ता खोल दिया। बवाल मचना ही था। मचा कहां, अभी मचना शुरू ही हुआ कि तीसरे दिन सरकार का जिद्दी बयान था, नहीं झुकेंगे। तो तीन दिन की ये खबरें हैं। आइए, अब इसके निहितार्थ पर थोड़ी चर्चा करें।

इन तीन दिनों में इस मसले पर कई लोगों से कई दौर में कई तरह की बातें हुईं। किसी को गुस्सा था तो किसी को दुख पर किसी का नजरिया तो कुछ और ही था, जो था बड़ा मार्केबल, जो था शेयर करने के लायक। गुस्सा कि ऐसी सरकार को तत्काल हट जाना चाहिए, हटा देना चाहिए और दुख कि ये क्या हो रहा है, महंगाई में अब कैसे दिन कटेंगे, साल में छह सिलेंडरों के बाद सातवां सिलेंडर साढ़े सात सौ रुपये में कैसे खरीदेंगे....। पर, दो लोगों की बातें मुझे बड़े मार्के की लगीं। यह आलेख उन्हीं के विचारों को शेयर करता है। उम्मीद है, इन विचारों से सोचों को कुछ गति मिलेगी। 

पहला है मेरा तीसरे नंबर का भाई। कल मैं बिहार में था और उसके साथ मोटर साइकिल पर मुजफ्फरपुर से लालगंज जा रहा था। मुजफ्फरपुर में ही एक पेट्रोल पंप पर तेल डलवाने के लिए रुका। कई मोटर साइकिल वालों की लाइन थी। भाई बाइक ड्राइव कर रहा था। मैं उतर कर बगल में खड़ा हो गया। पीछे-आगे कई लोग लाइन में लगे थे। आदतन मैंने यों ही बातचीत शुरू कर दी। सरकार को क्या हो गया है भई? डीजल की कीमत बढ़ा दी, रसोई गैस पर अंकुश लगा दी, अब विदेशी दुकानों के लिए रास्ता खोल दिया...। अभी मेरा वाक्य खत्म भी नहीं हुआ था कि आगे-पीछे लाइन में लगे कई लोग एक साथ बोलने लगे, ये हद है...., लगता ही नहीं कि लोकतंत्र है..., विदेशियों के हाथों सरकार बिक गई है.... मनमोहन पगला गया है...., सोनिया को देश से क्या मतलब...., लोग ही चूति... हैं जो इस पार्टी को वोट देते हैं, इस पार्टी को गद्दी पर बिठाते हैं....।

आखिर में भाई का कमेंट आया। मार्केबल कमेंट। भैया, लगता है मनमोहन सिंह ने कसम खा ली है कि 2014 के चुनाव में वोट नहीं लेना है। सरकार मानो साफ-साफ कह रही है कि देशवासियो, मत देना अगले चुनाव में मुझे एक भी वोट, सरकार कह रही है कि मुझे नहीं चाहिए तुम्हारा वोट...। उफ... लोकतांत्रिक प्रणाली वाले देश में सत्तारूढ़ सरकार के प्रति ऐसे-ऐसे कमेंट और सरकार फिर भी सत्तारूढ़, सोचकर रोएं खड़े हो गए। दिमाग के विचारों को झटका। भाई का नंबर आ गया था, बाइक में पेट्रोल डल चुका था और हम आगे बढ़ चुके थे। अब बात का टापिक बदल चुका था। बारिश हो रही थी और सड़क खराब थी। बातचीत खुद और गोड़ी दोनों को बचाने की होने लगी।

कल ही रात ट्रेन पकड़ी और बनारस आ गया। यहां दफ्तर में मिले वरिष्ठ पत्रकार सुरेश पांडेय जी। आज की खबरों की प्रायरिटी पर चर्चा के साथ हालचाल और कुछ अनौपचारिक बातें भी होने लगीं। अनौपचारिक बातों का मुद्दा भी वही था - मनमोहन के फैसले। सुरेश पांडेय जी का जो विचार सामने आया, वह भी मुझे कम मार्के का नहीं लगा। मुलाहिजा फरमाइए।

सुरेश पांडेय जी ने कहा, मनमोहन सरकार बड़ा दूरदर्शी कदम उठा रही है। पैसे बना रही है। मेरा स्वाभाविक सवाल था - पैसे बना रही है, दूरदर्शी कदम उठा रही है? उन्होंने कहा, हां। इस सरकार के अब सिर्फ दो ही मिशन हैं। पहला, जब तक सरकार है, तब तक खूब-खूब पैसा बनाओ और दूसरा, टार्गेट 2014 नहीं, टार्गेट है 2019। मैंने कहा, जरा डिटेल में समझाइए।

सुरेश जी ने कहा, कांग्रेस को मालूम है कि जितने आरोपों में उसकी सरकार घिर चुकी है, उस हिसाब से 2014 के चुनाव में तो वह जीतने से रही। उसे अच्छी तरह मालूम है कि 2014 के चुनाव के बाद उसे विपक्ष में बै ठना है और लड़ना है 2019 में। 2019 तक लोग भूल चुके होंगे। लोगों के सामने होगी उस सरकार की नाकामियां, जो सत्तारूढ़ होगी और विकल्प होगी सिर्फ कांग्रेस। तब तक नेता के रूप में राहुल गांधी भी बेहतर ढ़ंग से प्रोजेक्ट किए जा चुके होंगे। नए वादे और नए इरादों के साथ। इस हिसाब से मनमोहन ने बड़ा दूरदर्शी कदम उठाया है। वह फैसले ले रहे हैं। जनता से पैसा उगाही के फैसले। यह उगाही कहां से शुरू होकर कहां पहुंचेगी, क्या यह कहने की बात है? जिस देश में प्रखंडों से जाति प्रमाण पत्र बनवाने में पांच सौ, हजार का वारा-न्यारा हो जाता है, वहां डीजल के दाम पांच रुपये, रसोई गैस की कीमतें डबल और विदेशी कंपनियों को कारोबार का रास्ता देने में कितने का वारा-न्यारा होगा, क्या यह कहने की बात है। यह पांच साल तक विपक्ष में बैठने और पांच साल बाद चुनाव लड़ने की तैयारी है।

सुरेश जी को मैं क्या जवाब देता? हां, उनकी बातों ने सोचों की शृंखला को एक विस्तार जरूर दिया। आप भी सोचिए, अभी समय है....। फिर मिलूंगा।
 

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