शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

अन्ना तुम्हें नमन


अन्ना ने भी इस सपने के इतनी जल्दी सच होने की उम्मीद नहीं की थी, जिस पीढ़ी के बारे में माना जा रहा था कि आगे निकलने की होड़ में वो कुछ भी पीछे छोड़ सकती है। अपना देश संस्कृति यहाँ तक कि अपना परिवार भी वही आज अन्ना के साथ खड़ी है। अन्ना के अनशन के आगे सरकार घुटने टेकेगी या नहीं, मजबूत लोकपाल बिल क्या कभी बन पाएगा? ये सवाल अब उतना मायने नहीं रखता जो अन्ना करना चाहते थे वो तो उन्होंने कर दिखाया। अनशन से बड़ा काम गिरफ्तारी ने कर दिया । जनता इस तरह सड़कों पर आ गई कि कांग्रेस की जान साँसत में आ गई ।
अन्ना के बारे में कहा गया था कि न तो महाराष्ट्र के बाहर उनकी कोई पहचान है नही पीछे कोई संगठन. फिर भी आज दिल्ली से लेकर पटना तक जनसैलाब उमड़ पड़ा है। ये कहने वाले भूल गए कि अन्ना की अदम्य इच्छाशक्ति के साथ देश का मीडिया भी खड़ा है। इस पर शायद ही किसी को आपत्ति हो कि अन्ना की आवाज को जनता की आवाज मीडिया ने बनाया। निगमानंद के अनशन व अन्ना के अनशन में फर्क मीडिया ने ही पैदा किया। आज जो लोग जुटे हैं वो सिर्फ अन्ना का साथ देने क लिये ही नहीं खड़े वे खड़े हैं भ्रष्टाचार में आकंठ डूब चुके अपने जनप्रतिनिधियों के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए। सक्षम विपक्ष के अभाव में जनता को तलाश थी एक ऐसे चेहरे की जो निस्वार्थ हो,जिसके पीछे वो आँखे मूंदकर चल सकें। जनमानस के भीतर सुलग रही आग को अन्ना ने तो सिर्फ हवा दी है, उसे प्रचंड अग्नि का रूप तो केंद्र सरकार के दमन ने दिया। रामलीला मैदान में बाबा रामदेव के साथ शांतिपूर्वक विरोध कर रहे लोगों पर जिस तरह से लाठियाँ बरसाई गई वो सबने देखा, जनता अब ये सब नहीं भूलती, मीडिया भूलने ही नहीं देता ।
टीवी पर २४ घंटे के लाइव कवरेज ने कपिल सिब्बल को खलनायक बना दिया। यहाँ तक कि दिल्ली की काँग्रेसी मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने भी इस मामले मे सिब्बल से पल्ला झाड़ लिया। शायद इसलिए इस बार सरकार ने अचानक ही मघ्यम मार्ग अपना लिया, पहले अन्ना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए,उन्हें गिरफ्तार किया फिर अचानक यू टर्न ले लिया। राहुल गाँधी समझ गए थे कि रामदेव व अन्ना में फर्क है। अन्ना भागेंगे नहीं,न ही वो किसी तरह भी डिगाए जा सकेंगे। सबसे बड़ी बात ये कि उनके पास इस फौजी की कोई कमजोर कड़ी नहीं है ।
हम नमन करते हैं तुम्हे अन्ना। तुमने हमारे राष्ट्रीय बोध को जगाया। विश्वकप जीतने पर जीतने पर तिरंगा लेकर जश्न मनाने को ही देशभक्ति का पर्याय मानने वाले युवाओं को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ना सिखाया। आज सड़कों पर ढोल बजाते, कैंडल मार्च करते, तो कभी माथा मुंडवाकर उसपर अन्ना लिखवाने वाले लोगों में पटना के डाक्टरों से लेकर मुंबई के डिब्बे वाले तक शामिल हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों से लेकर आँटों वाले तक है। यदि अन्ना सफल हो गए तो अब तक भीड़तंत्र कहा जाने वाला भारतीय लोकतंत्र परिपक्वता के पहले सोपान को पार कर लेगा।
विजयलक्ष्मी सिंह


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