साठ घंटे, 183 लोगों की मौत। बीस जांबाज शहीद। 40 अरब की चपत (एसोचैम के मुताबिक)। ...फिर भी जीत गए जंग। कैसे? क्या सिफॆ आतंकियों को मार गिराने से? क्या इतने के बावजूद हम उनके जिंदा रहने की उम्मीद कर रहे थे? इस सवाल का मतलब सिफॆ इतना है कि हम आत्ममुग्धता की हालत में न रहें। आतंकियों की इतनी बड़ी कारॆवाई हमारी कमजोरी के बिना संभव नहीं थी। टटोलें, कहां कमजोर हैं हम? वरना हालात और बुरे होंगे।
शनिवार, 29 नवंबर 2008
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4 टिप्पणियां:
sahi baat hai.
सच में सोचने वाली बात है--चिंतन का विषय -लेकिन इस बार इस का कोई न कोई हल निकलना ही चाहिये -
देश के लिए शहीद होने वालों को मेरा सादर नमन है.
बिल्कुल सहमत बहुत सही बात की है आपने -कृपया यहाँ भी विचार वयक्त करें http://mishraarvind.blogspot.com/
Atmmanthan karne ki vaastav me jarurat hai.
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