यह तो सभी जानते हैं कि हर चीज के कम से कम दो पहलू हो सकते हैं। ठीक ठंडा-गरम की भांति। मगर जैसा कि ओशो कहते हैं कि ठंडा व गरम दो चीज नहीं होते, बल्कि एक ही चीज तापमान के दो रूप हैं। थोड़ा कम जो तापमान है, वह ठंडा है। थोड़ा ज्यादा जो तापमान है, वह गरम है। सोचने का मुद्दा यह है कि तापमान के बदल जाने से वस्तु की प्रकृति कितनी बदल जाती है!संदर्भ बदलता हूं। गमछा (अंगोछा या तौलिया) किसके घर में नहीं होता। सोचिए, आप इसका कैसा इस्तेमाल करते हैं? हाथ-मुंह पोंछते हैं, और क्या। अब इस गमछे को आप कंधे पर लेकर घूम रहे हैं। लोग आपको साधारण समझते हैं, आपका मनोमस्तिष्क भी एक साधारण मानव सा बना रहता है। इसी गमछे को जरा पगड़ी की तरह सिर पर बांध लीजिए। नकाबपोश की तरह चेहरे पर कस लीजिए। क्या होगा? लोगों के सामने आपकी पहली जो छवि प्रस्तुत होगी, वह एक बदमाश, गुंडे, लफंगे की होगी। लोगों की तो छोड़िए, आप खुद भी मिजाज में तल्खी, गरमी महसूस करने लगेंगे। तो यह देखा आपने कि एक गमछे के पहनने-बांधने का तरीका बदलने से मनुष्य की प्रकृति कितनी बदल जाती है।मूंछों का किस्सा कहना चाहूंगा। हो सकता है आपको अपनी मूंछों का हमेशा ख्याल न रहता हो। मगर मेरे कहने पर जरा मूंछों को बढ़ाइए, उस पर ताव देना शुरू कीजिए। आप देखेंगे कि जितनी बार आप मूंछों को ताव देते हैं, उतनी बार मिजाज में गरमी का प्रवेश होता है। मूंछों की कोरों को कटवा लीजिए, छंटवा लीजिए, मिजाज बिल्कुल सामान्य बना रहेगा।अब जरा इस पर गौर फरमाइए। एक फटा कुर्ता और मैला-कुचैला पाजामा पहना कोई व्यक्ति आपके बिस्तर पर बैठना चाहता है। आप बैठने देंगे? यदि वह बैठ भी गया तो बहुत देर तक नाक-भौं सिकोड़ते रहेंगे। हो सकता है, उसके जाने के बाद आप चादर को ड्राई-क्लीनर को भेज दें। तस्वीर का दूसरा पहलू यह है कि साफ-सुथरा सूट-बूट में कोई व्यक्ति आपके घर आया और आप उसे अपने बिस्तर पर बिठाने में इसलिए हिचक गये कि उसका ड्रेस कहीं पहले से बिछी चादर से गंदा न हो जाये, खराब न हो जाये। उपाय न रहा और वह उसी बिस्तर पर बैठ गया तो वह तो नाक-भौं सिकोड़ता ही रहेगा और जल्दी उठ जाने की हड़बड़ी दिखाता ही रहेगा और जव वह उठकर चला जायेगा तो आप भी लेंगे राहत की सांस।तो कुल मिलाकर बात इतनी है कि आपका ड्रेस सेंस आपके व्यक्तित्व पर बड़ा प्रभाव डालता है। इससे आप लापरवाह नहीं हो सकते। रात में सोने के लिए पहने जाने वाले कपड़ों में किसी मेहमान के पास नहीं जा सकते। मेहमान के घर जाने वाले कपड़ों में लक-दक होकर आप दफ्तर नहीं जा सकते। दफ्तर में पहने जाने वाले कपड़ों में आप पूजा पर नहीं बैठ सकते। पूजा पर बैठने वाले कपड़ों में किसी समारोह में हिस्सा नहीं ले सकते। और यदि आप इस ड्रेंस सेंस का ख्याल किये बिना घूमते-फिरते रहे, कहीं के कपड़ों में कहीं पहुंचते रहे तो आपकी क्या छवि बनेगी, यह क्या कहने की जरूरत है? हो सकता है, लोग आपको पागल तक कहने लगें। तो व्यक्तित्व विकास के लिए संवाद पर नियंत्रण के बाद जो ख्याल करने की बात है, वह है ड्रेस सेंस। आज इतना ही, व्यक्तित्व विकास पर अभी बातें जारी रहेंगी।
विचारः आसमानी बिजली हमेशा एक ही जगह नहीं गिरती। अभी इधर गिरी है तो कभी उधर भी गिरेगी। इधर गिरी है तो कुछ बच भी गया है, उधर गिरेगी तो कुछ बचेगा भी, इसकी क्या गारंटी है?
श्री कौशल शुक्ला हमारे मित्र हैं। इन दिनों मुजफ्फरपुर में हैं। ..विचार के लिए विचार के नाम से उनका ब्लॉग है। अपने ब्लॉग पर वे व्यक्तित्व विकास पर सीरीज में लेख लिख रहे हैं। इस श्रृंखला की यह चौथी कड़ी है। कौशल जी से अनुमति लेकर उसे यहां भी पोस्ट किया गया है। अच्छा लगे तो अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।
शनिवार, 27 दिसंबर 2008
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7 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा आलेख है....जारी रखें।
आपके ब्लॉग पर बड़ी खूबसूरती से विचार व्यक्त किये गए हैं, पढ़कर आनंद का अनुभव हुआ. कभी मेरे शब्द-सृजन (www.kkyadav.blogspot.com)पर भी झाँकें !!
jankari ke liye aabhar. naye saal ki hardik subkamnayein.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं !!
personality vishay par bahut hi rochak lekh hai.
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं .
रोचक आलेख लगा.
नववर्ष शुभ हो.
आदरणीय सभी सम्मानित जन,
आपकी अच्छी प्रतिक्रिया पर आभार व्यक्त करने के लिए शब्दों की कमी पाता हूं। इतना ही कहूंगा, पर्सनालिटी डेवलपमेंट पर लिखने की कोशिश जारी है। पढ़िये और मार्गदर्शन कीजिए। - कौशल।
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