शनिवार, 6 दिसंबर 2008

फिर उठा है देशप्रेम का ज्वार

देश पर मर-मिटने वालों की कमी तो हिंदुस्तान में कभी नहीं रही। लेकिन मुंबई पर आतंकी हमलों के बाद देशप्रेम का जो ज्वार दिख रहा है, वह उत्साहित करनेवाला है। पत्र-पत्रिकाओं में लिखे जाने वाले लेख, पाठकों के पत्र, मोबाइल के जरिए आने वाले संदेश बताते हैं कि मुंबई के आतंकी हमलों ने आम जनता को देश के बारे में नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है। क्या लोगों को लगने लगा है कि नेताओं के भरोसे रहने का वक्त गुजर चुका है?

दरअसल नेताओं के प्रति इस कदर नाराजगी पहले कभी नहीं देखी गई। यह नाराजगी किसी एक दल या एक नेता के प्रति नहीं, बलि्क सभी से है। नेताओं से लोग जितने निराश हुए हैं, लोगों का खुद पर भरोसा उतना ही बढ़ा है। इसकी एक बानगी जबलपुर में देखने को मिली। बताया जाता है कि यहां के १०० युवकों ने स्थानीय कलक्टर को यह लिखकर दिया है कि वे देश के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। यह अभिव्यक्ति अकारण नहीं है। दरअसल, चंद आतंकियों ने मुंबई को जिस तरह साठ से ज्यादा घंटों तक बंधक बनाए रखा, उससे लोगों का यह विश्वास हिल गया है कि सरकारें हमें महफूज रखेगी। भरोसे की इस मौत ने लोगों के अंदर आक्रोश भी पैदा किया। इसी आक्रोश ने केंद्रीय गृहमंत्री, एक मुख्यमंत्री और एक उपमुख्यमंत्री को विदा करने पर मजबूर किया। इंतजार है लोगों के देशप्रेम के ज्वार व भरोसे के कत्ल के खिलाफ आक्रोश के और सकारात्मक नतीजों का।

4 टिप्‍पणियां:

dhirendra nath pandey ने कहा…

नेताऒं की कोरी बयान बाजी केही जन कारण ता आज सड़कों पर है। अब समझ में आ गया है कि संसद में कुर्सी फेंकने वाले इन नेताऒं के अंदर इतनी हिम्मत नहीं है, कि वह पाक से दो-दो हाथ कर सके। यह नेता तो वोट के भिखारी हैं। अब जो करेगी जनता ही करेगी।

शोभा ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है।

Udan Tashtari ने कहा…

काश!! आमजन में जागा यह आक्रोश और जोश बरकरार रहे.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आप ने ठीक कहा,
पर अगर आक्रोश को सही दिशा मिल गई
तो हमें आगे आने से कोई रोक नही सकता